मदर टेरेसा पर निबंध
मदर टेरेसा का नाम सुनते ही मन में करुणा, सेवा, और प्रेम की भावना जाग्रत होती है। वह न केवल एक महान संत थीं, बल्कि मानवता की सेवा में अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित करने वाली एक आदर्श नारी थीं। उनका जीवन उन सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है जो दूसरों की सेवा के लिए तत्पर रहते हैं।
प्रारंभिक जीवन
मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को मैसेडोनिया के स्कोप्जे में हुआ था। उनका मूल नाम ‘अगनेस गोंझा बोयाजियू’ था। बचपन से ही उनमें दूसरों की मदद करने की भावना जाग्रत थी। जब वे केवल 18 वर्ष की थीं, तब उन्होंने ईसाई धर्म के प्रचार और सेवा के लिए अपना घर छोड़ दिया और आयरलैंड के एक मठ में शामिल हो गईं। वहां से उन्हें भारत भेजा गया, जहां उनकी असली सेवा यात्रा शुरू हुई।
भारत में सेवा कार्य
मदर टेरेसा 1929 में भारत आईं और कोलकाता में रहकर गरीबों और बीमारों की सेवा करने लगीं। उन्होंने ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ नामक संस्था की स्थापना की, जो आज भी गरीबों, बीमारों और असहायों की सेवा में लगी हुई है। मदर टेरेसा का मुख्य उद्देश्य था, समाज के उन वर्गों की सेवा करना जिन्हें दुनिया ने भुला दिया है। वे गरीबों को खाना, कपड़े और शरण देती थीं। उन्होंने कुष्ठ रोगियों, अनाथ बच्चों, और बेघर लोगों की सेवा के लिए अनेक अस्पताल, अनाथालय और आश्रम खोले।
मानवता के प्रति समर्पण
मदर टेरेसा ने जीवन भर मानवता की सेवा की। उनके कार्यों के कारण उन्हें ‘मदर’ कहा जाने लगा। उनकी सेवा भावना के कारण ही उन्हें 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, उन्हें भारत सरकार ने भी अनेक पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा, जिनमें ‘भारत रत्न’ भी शामिल है।
मृत्यु और विरासत
मदर टेरेसा का निधन 5 सितंबर 1997 को हुआ। उनकी मृत्यु के बाद भी उनकी संस्था ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ उनके द्वारा शुरू किए गए कार्यों को आगे बढ़ा रही है। उनके सेवा कार्यों की गूंज पूरी दुनिया में है और उन्हें संत की उपाधि दी गई।
निष्कर्ष
मदर टेरेसा का जीवन हमें सिखाता है कि सच्ची सेवा वही है जो निःस्वार्थ भाव से की जाए। उन्होंने अपने जीवन को दूसरों की भलाई के लिए समर्पित कर दिया और दुनिया को दिखाया कि प्रेम और करुणा के साथ हम किसी भी कठिनाई का सामना कर सकते हैं। उनकी जीवन यात्रा एक प्रेरणा है, जो हमें यह याद दिलाती है कि जब हम दूसरों के लिए कुछ करते हैं, तभी हमारा जीवन सार्थक होता है।
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