बहुत समय पहले की बात है, एक गांव में मोहन नाम का एक गरीब किसान रहता था। वह मेहनती था लेकिन बहुत गरीब। एक दिन वह खेत में हल चला रहा था कि अचानक उसकी हल की नोंक एक धातु की संदूक से टकराई।
मोहन ने ज़मीन खोदी और देखा कि वह एक सोने के सिक्कों से भरा खज़ाना था!
पहले तो वह बहुत खुश हुआ। लेकिन फिर उसने सोचा –
“ये खज़ाना मेरा नहीं है। ये ज़रूर किसी और का होगा। अगर मैं इसे रख लूंगा, तो क्या मैं बेईमानी नहीं करूंगा?”
वह खज़ाना उठाकर गांव के सरपंच के पास गया और बोला,
“मुझे खेत में ये खज़ाना मिला है। मैं नहीं जानता ये किसका है, पर ये मेरा नहीं है।”
सरपंच ने गांववालों को बुलाया और ऐलान किया –
“मोहन ने जो किया है, वह ईमानदारी की मिसाल है। हम सब मिलकर तय करेंगे कि इस खज़ाने का क्या किया जाए।”
तभी एक बूढ़े आदमी ने आकर कहा, “यह खज़ाना मेरे दादा का है। उन्होंने इसे युद्ध के समय ज़मीन में छुपाया था। मैं सबूत ला सकता हूँ।”
मोहन ने तुरंत कहा, “अगर ये आपका है, तो इसे आप ही रखें।”
बूढ़ा बहुत भावुक हो गया और बोला,
“बेटा, तुम सच्चे और ईमानदार हो। मैं इस खज़ाने का आधा हिस्सा गांव के भले के लिए और आधा हिस्सा तुम्हें देना चाहता हूँ।”
गांववालों ने तालियाँ बजाईं और कहा –
“मोहन ही असली खज़ाना है!”
🌟 सीख:
ईमानदारी और सच्चाई कभी व्यर्थ नहीं जाती। सच्चा खज़ाना हमारी अच्छाई और नैतिकता है।
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