बहुत समय पहले की बात है, एक घना जंगल था। उस जंगल में एक हरा-भरा पेड़ था, जिस पर एक बुद्धिमान तोता रहता था। वह तोता बहुत ही समझदार और व्यवहारकुशल था। जंगल के सभी जानवर उसकी बातों को ध्यान से सुनते और उसका आदर करते थे।
तोता हर दिन सुबह उठकर मीठी-मीठी बोली में बोलता और अपने पेड़ के चारों ओर के वातावरण को साफ रखता। वह फलों का सेवन करता, लेकिन कभी भी अधिक लालच नहीं करता। वह अन्य पक्षियों और जानवरों को भी मिल-बांटकर खाने की सलाह देता।
एक दिन जंगल में आग लग गई। आग बहुत तेजी से फैल रही थी और सभी जानवर डर के मारे इधर-उधर भागने लगे। लेकिन वह तोता अपने पेड़ को छोड़ने को तैयार नहीं था। उसने देखा कि आग धीरे-धीरे उसके पेड़ तक भी पहुंच रही है।
तोता उड़कर पास की नदी पर गया और अपनी चोंच में थोड़ा-सा पानी भरकर वापस आया और आग पर डाला। वह बार-बार यही करता रहा। जंगल के अन्य जानवर उसकी इस कोशिश को देखकर हँसने लगे और बोले, “इससे क्या होगा? इतनी सी चोंच में कितना पानी आएगा?”
लेकिन तोता बोला, “अगर मैं कुछ नहीं करूंगा तो फिर किसका इंतजार करूं? जब तक सांस है, मैं कोशिश करता रहूंगा।”
उसी समय आकाश में उड़ते-उड़ते देवताओं ने यह दृश्य देखा। वे तोते की निःस्वार्थ सेवा से प्रभावित हुए। एक देवता एक बड़े बादल के रूप में प्रकट हुए और तेज बारिश कर दी। धीरे-धीरे आग बुझ गई और पूरा जंगल बच गया।
अब सभी जानवर तोते की तारीफ करने लगे। उन्हें समझ आ गया कि अगर कोई सच्चे दिल से कोशिश करे, तो वह असंभव को भी संभव बना सकता है।
शिक्षा: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि प्रयास छोटा हो या बड़ा, अगर मन में सच्ची लगन और साहस हो, तो कोई भी कार्य असंभव नहीं होता। दूसरों की नकल न करके अपने कर्तव्य को निभाना ही सच्चा परोपकार है।
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